Farming: Assistant commandant left the job for white sandalwood cultivation, know what is the plan of Pandeji of Pratapgarh

उत्कृष्ट पांडे ने अब भदौना में सफेद चंदन और काली हल्दी की खेती करने का फैसला किया है. सशस्त्र सीमा बल में असिस्टेंट कमांडेंट की जॉब कर रहे उत्कृष्ट पांडे ने साल 2016 में अपनी नौकरी छोड़ दी और लखनऊ से करीब 200 किलोमीटर दूर भदौना गांव में मार्सेलो एग्रोफार्म नाम की कंपनी बनाई है.

https://hindi.economictimes.com/kheti-kisani/capf-officer-quits-dream-job-turns-into-farmer-to-promote-white-sandalwood-cultivation/articleshow/95991456.cms

पांडे ने कहा, “सीआरपीएफ में मेरी शानदार नौकरी थी. मैंने बिहार, झारखंड और असम जैसे राज्य में करीब 6 साल तक नौकरी की. नौकरी के दौर में ही मैं सोचता था कि मुझे अपने गांव के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे वहां के लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो. इसके बाद मैंने सफेद चंदन और काली हल्दी की खेती शुरू करने का फैसला किया. मैं यह चाहता हूं कि हमारे गांव के युवा आत्मनिर्भर बनें.”

साल 2016 में पांडे ने अपनी नौकरी छोड़ दी और कई इलाकों में खेती के बारे में जानकारी जुटाई. इसके बाद उन्हें सफेद चंदन और काली हल्दी की खेती के बारे में पता लगा. पांडे ने कहा कि पहले लोग सोचते थे कि चंदन केवल दक्षिण भारत में ही हो सकता है, लेकिन जब मैंने डिटेल में स्टडी की तो पाया कि उत्तर भारत के कई इलाके में भी सफेद चंदन की खूब खेती हो रही है.

इसके बाद उन्होंने बेंगलूर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ फूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी में पढ़ाई की. पांडे ने कहा कि एक किसान सफेद चंदन के 250 पेड़ से 15 साल में ₹2 करोड़ से अधिक कमा सकता है. इसी तरह काली हल्दी की कीमत ₹1000 प्रति किलोग्राम तक मिलती है.

पांडे के पास भदौना गांव में करीब 4 एकड़ पैतृक जमीन है. उन्होंने सफेद चंदन और काली हल्दी की खेती करने के लिए देश के कई कृषि विश्वविद्यालय का दौरा किया और हजारों किसान से मिलकर नेचुरल और ऑर्गेनिक फार्मिंग के बारे में सीखने की कोशिश की.

पांडे ने कहा कि सफेद चंदन की दुनिया भर में बहुत मांग है और इसकी लकड़ी बहुत महंगी बिकती है. सफेद चंदन का उपयोग परफ्यूम बनाने में किया जाता है जबकि इसकी कुछ मेडिसिनल प्रॉपर्टीज भी है. सफेद चंदन मुख्य रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु में उगाया जाता है.

पांडे ने कहा, “हमारे गांव के लोगों को भी सफेद चंदन की वैल्यू के बारे में पता है. इसके बाद उन्होंने कोरोनावायरस संकट की अवधि में पांडेजी के साथ मिलकर इसकी खेती में दिलचस्पी लेनी शुरू की है.”

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